टैटू क्या है? लोग अपने शरीर पर टैटू बनवाना क्यों पसंद करते हैं ?
लोगों को अपने शरीर पर टैटूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूू(tatoo) गुदवाने का शौक होता हैं। वह लोग अपने शरीर पर टैटू गुदवाते थे।
इसका क्या कारण है आइए हम बताते हैं टैटू की उत्पत्ति कहां से हुई है और किस प्रकार कौन-कौन लोग टेटू गुदवाते है।
आइए हम आगे बताते हैं-
हम टैटू के निम्न प्रश्नों के उत्तर जानेंगे
1. टैटू का आरंभआज
2. टैटू का अर्थ
3. टैटू की परिभाषा
4. लोग अपने शरीर पर टैटू क्यों गुदवाते हैं
5. टैटू पर लोगों का विश्वास और अंधविश्वास
6. टेटू का फायदा और नुकसान
7. विभिन्न देशों द्वारा टैटू पर लगे रोकथाम
1.टैटू का आरंभ
→विश्व में इस कला के असली प्रमाण ईसा से 1300 साल पहले मिस्र में, 300 वर्ष ईसा पूर्व साइबेरिया के कब्रिस्तान में मिले हैं। ऐडमिरैस्टी में रहने वालों, फिजी निवासियों, भारत के गोंड और टोडो, ल्यू क्यू द्वीप के बाशिन्दों और अन्य कई जातियों में रंगीन गोदना गुदवाने की प्रथा केवल स्त्रियों तक सीमित है।
मिस्र के ईसा पूर्व 2000 वर्ष पहले की पुरानी प्रेरक शिक्षकों के शरीर में भी के टुकड़े हुए पाए गए
2.टेटु का अर्थ
→ इसको अंग्रेजी भाषा में टैटू(Tattoo) कहते हैं यह टहिटी (Tahti) से लिया गया है जो सन 1796 मैं जेम्स कुक की खोज यात्रा के दौरान पहली बार रिकॉर्ड किया गया था।
→ टैटूू शब्द का अर्थ कभी-कभी त्याग करना भी होता है।
3.टैटू की परिभाषा
→शरीर की त्वचा में सुइयों के द्वारा रंगद्रव्य पहुंचाकर स्थाई चिन्हों या डिज़ाइनों को बनाना गोदना (टेटु) कहलाता है।
→गुदना (tatoo) को पछेना या अंकन भी कहते हैं। शरीर की त्वचा पर रंगीन आकृतियाँ उत्कीर्ण करने के लिए अंग विशेष पर घाव करके, चीरा लगाकर अथवा सतही छेद करके उनके अंदर लकड़ी के कोयले का चूर्ण, राख या फिर रँगने के मसाले भर दिए जाते हैं। घाव भर जाने पर खाल के ऊपर स्थायी रंगीन आकृति विशेष बन जाती है। गुदनों का रंग प्राय: गहरा नीला, काला या हल्का लाल रहता है। अंकन की एक विधि और भी है जिससे बनने वाले व्रणरोपण को क्षतचिह्न या क्षतांक कहा जाता है। इसमें किसी एक ही स्थान की त्वचा को बार-बार काटते हैं और घाव के ठीक हो जाने के बाद उक्त स्थान पर एक अर्बुद या उभरा हुआ चकत्ता बन जाता है जो देखने में रेशेदार लगता है। पशुओं मे गोदना पहचान या ब्रांडिंग के लिए उपयोग किया जाता है पर मनुष्यों मे गोदना का उद्देश्य सजावटी शरीर संशोधन है।
4.लोग अपने शरीर पर टैटू क्यों गुदवाते हैं
संसार के अधिकांश भागों में लोगों को टैटू गुदवा ना बहुत अच्छा लगता है।
कुछ लोग में यह अंधविश्वास होता है कि गोदना गोदवा ने से रोग और दुर्भाग्य से बचने के लिए जादू सुरक्षा प्राप्त हो जाती है तथा पर अपने शरीर को सुंदर बनाना या सजाना गोदना गोदवा ने का सबसे सामान्य कारण है
अक्सर कहा जाता है कि मृत्यु के बाद कुछ भी साथ नही जाता लेकिन अगर हम कहें कि कुछ है जो मौत के बाद भी साथ जाता है तो शायद आप यकीन न करें लेकिन डिंडौरी जिले के बैगा आदिवासियों का मानना है कि गोदना या आधुनिक समाज का फैशन टैटू शरीर नही आत्मा का श्रृंगार है …
गोदना याने शरीर पर चलती सुईयां …
चेहरे पर झलकता दर्द …
लेकिन साथ ही आँखों में संतोष और खुशी की मुस्कुराहट
बैगा जनजाति में गोदना होता है स्त्रियों का श्रृंगार
बैगा जनजाति की आठ वर्ष की लड़कियों के शरीर में गोदना बनवाना शुरू होता है और शादी के बाद भी वे गोदना बनवाती रहती हैं। झुर्रियों से भरे चेहरे को चीरकर एक लंबी मुस्कान देती हुई बैगा जनजाति की महिला कुशुमा देवी (58 वर्ष) बताती हैं, 'गोदना हमारी जनजाति की स्त्रियों का श्रृंगार होता है। हम गोदना गुदवाने को अपना धर्म मानते हैं। हमारे समाज में गोदना वाली स्त्रियों का समाज में मान बढ़ता है। शुरुआत में गोदना माथे (कपाल) पर फिर धीरे-धीरे शरीर के बाकी हिस्सों में गुदवाया जाता है।' कुशुमा आगे बताती है कि गोदना बरसात के मौसम को छोड़कर बाकी सभी मौसम में गुदवा सकते हैं।
5. टैटू पर लोगों का विश्वास और अंधविश्वास
ऐसी मान्यता है कि जो बच्चा चल नहीं सकता, चलने में कमजोर है, उस के जांघ के आसपास गोदने से वह न सिर्फ चलने लगेगा बल्कि दौड़ना भी शुरू कर देगा।' कुछ विद्वानों की राय में गोदना के जरिए शिराओं में प्रवाहित की जाने वाली दवाएं आजीवन भर शरीर को गंभीर बीमारियों से दूर रखती है। इस तरह से गोदना जापानी परंपरा के एक्यूपंचर की तरह है।
देश में कई ऐसे समाज हैं जो अभी तक पौराणिक काल की परंपराएं मानते आ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज की में आज भी ऐसी ही एक परंपरा का लोग पालन कर रहे हैं जिसे देखकर हैरानी होना स्वाभाविक है।
दरअसल, इस समाज के लोग अपने पूरे शरीर में रामनाम का टैटू बनवाते हैं जिसे सामान्य भाषा में गोदना कहा जाता है।
यह परंपरा लगभग 100 वर्षो से भी से अधिक समय से चली आ रही है।
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विचित्र बात तो यह है कि इस समाज के लोग न मंदिर जाते हैं और न पूजा-अर्चना करते हैं। उनकी इस परंपरा को भगवान की भक्ति समेत सामाजिक बगावत के तौर पर देखा जाता है।
दरअसल, 100 साल पहले गांव में उच्च जाति के हिन्दू लोगों ने इस समाज को मंदिर में घुसने से मना कर दिया था, जिसके बाद से ही समाज ने विरोध करने के लिए पूरे शरीर पर राम नाम टैटू बनवाना शुरू कर दिया था।
6.टैटू के फायदा और नुकसान
(क)टैटू के फायदा
टेटू का हमारे शरीर पर, मन पर और जीवन पर सीधा असर पड़ता है, खासकर उन टैटू का जो कि किसी आकृति के रूप में होते हैं. यानी यदि आप ने अपने शरीर में कोई आकृति बनवाई है तो उसका प्रभाव आपके मन, शरीर और व्यवहार में आना तय है.
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उदाहरण के लिए आप ने यदि कोई धार्मिक चिह्न अपने शरीर पर टैटू के रूप में बनवाया है जैसे मान लीजिए कि आप ने ओम या स्वास्तिक की आकृति टैटू के रूप में अपने शरीर पर बनवाई है तो इससे आपको लाभ तभी होगा जब ये आकृति सही तरीके से टैटू के रूप में बनाई गई हो. आपका मन प्रसन्न रहेगा, कॉन्फिडेन्स बढ़ेगा, काम बनेंगे, सफलता मिलेगी.
(ख)टेटू बनवाने से पहले जान लें इससे होने वाले नुकसान
टैटू बनाने के लिए नीले रंग की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें एल्यूमिनियम और कोबाल्ट होता है। ये हमारी त्वचा के लिए काफी खतरनाक होते हैं।
आजकल जिसे देखो वह टैटू बनवा रहा है। टैटू का क्रेज खासकर युवाओं में अधिक देखने को मिल रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपका यह शौक आपके शरीर के लिए हानिकारक भी साबित हो सकता है? एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 18 से 35 वर्ष के उम्र की दुनिया की आधी आबादी के शरीर पर किसी न किसी तरह का टैटू बना हुआ होता है। जानें, टैटू बनवाने से किस तरह की परेशानियों का सामना आपको करना पड़ सकता है.
बनवाने से त्वचा में लालिमा, मवाद, सूजन जैसी कई तरह की परेशानियां हो सकता हैं। इसके अलावा कई तरह के बैक्टीरियल संक्रमण भी आपको इनसे हो सकते हैं। पर्मानेंट टैटू के दर्द से बचने के लिए कई लोग नकली टैटू का सहारा लेते हैं। यह तो और भी ज्यादा खतरनाक होता है।
स्किन कैंसर
टैटू बनवाने से सोराइसिस बीमारी के होने का डर रहता है। एक इंसान पर इस्तेमाल की गई सुई का दूसरे इंसान पर इस्तेमाल करने से त्वचा संबंधित रोग, एचआईवी और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे स्किन कैंसर के होने का भी खतरा बढ़ जाता है।
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टॉक्सिक इंक्स
ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा प्रायोजित अध्ययन में पाया गया है कि प्रत्येक पांच टैटू इंक में से एक में कार्सिनोजेनिक केमिकल्स मौजूद होते हैं जो गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं। टैटू बनाने के लिए नीले रंग की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें एल्यूमिनियम और कोबाल्ट होता है। नीले रंग के अलावा दूसरे रंगों में कैडियम, क्रोमियम, निकल व टाइटेनियम जैसी कई धातुएं मिली रहती हैं, जो कि त्वचा के लिए बेहद हानिकारक होती हैं। इसमें मौजूद केमिकल्स जैसे मरकरी और कॉपर त्वचा के लिए बेहद हानिकारक होते हैं।
मांसपेशियों को होता है नुकसान
युवा अपनी त्वचा पर शौक से टैटू बनवाते हैं, लेकिन उसके बाद होने वाले नुकसान से अंजान रहते हैं। कुछ डिजाइन ऐसे होते हैं जिनमें सुइयों को शरीर में गहराई तक चुभाया जाता है। इसके कारण मांसपेशियों को काफी नुकसान पहुंचता है। विशेषज्ञों के अनुसार, शरीर पर जहां भी तिल हो, वहां टैटू बनवाने से बचना चाहिए।
हेपेटाइटिस बी का खतरा
टैटू बनवाने से पहले लोगों को हेपेटाइटिस बी का टीका जरूर लगवा लेना चाहिए। किसी स्पेशलिस्ट से ही टैटू बनवाएं। स्पेशलिस्ट उपकरण और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं। जिस जगह पर टैटू बनवाएं वहां पर हर दिन एंटीबायोटिक क्रीम लगाएं।
7.विभिन्न देशों द्वारा टैटू पर लगे रोकथाम
ईसाई धर्म की स्थापना के बाद यूरोप में गोदना गोदवा ने पर प्रतिबंध लग गया था परंतु यह विश्व के अन्य भागों में प्रचलित रहा बहुत जन जातियों के लोगों में अपने चेहरे और शरीर पर गोदना गोदवा ने एक परंपरा की तरफ प्रचलित हो गया यूरोप के को जानवरों का जख्मी इंडियंस और कॉलेज के निवासियों के संबंध में धातु रोकने भी फिर से गोदना गोदवा ले का फंक्शन चल निकला सोचा कि ऊपरी परत को मामूली तौर पर छेद ना होने की आम तकनीक थी लेकिन कुछ जनजातियों में इनके रंग भरना शुरू कर दिया
तो अन्य ने सुई की सहायता से छेद कर तो चाकी नीचे रंगीन दागी डालने प्रारंभ कर दिया जापान में लकड़ी के हाथों में लगी सुयोग का सफेद रंगीन होने से पौधे की क्या जाति थी बहुत से लोग अपने शरीर की त्वचा पर गोदना गोदा ले लिया जाता था गुड नाईट गुड मॉर्निंग के लिए पीतल का उपयोग किया जाता है विद्युत से गोदना गोदने की प्रथम पुत्र अमेरिका में 491 में किया गया* की डिजाइन बनाने के सत्र में अमेरिका पूर्व विश्व का केंद्र बन गया था अब देश भक्ति प्रेम और धर्म के संबंधित कूदने के मूल भाव विषय और शैली की दृष्टि से पूरे विश्व में एक समान दिखते हैं19वीं शताब्दी में अमेरिका में पकड़े गए अपराधियों से ना छोड़कर भागे हुए सैनिको वादी को उनकी त्वचा पर बने हुए कूदने से ही पहचाना जाता था तृतीय विश्व युद्ध में जर्मनी की युद्ध की शिविरों में कैदियों को भी इसी प्रकार पहचान बनाई जाती हैत्वचा पर कूदना बनाने से दूषित उपकरण से कैंसर जैसी भयानक बीमारी के फैलने की संभावना के कारण संसार के अन्य देशों में की सरकारों ने इस पर प्रतिबंध लगा दीजिए तथा पेंशन विभाग सहित संसार के अन्य देशों में प्रचलित
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